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भारत में कॉर्पोरेट अभिशासन का उद्भव 90 के दशक में हुआ था। इसकी शुरूआत कैडबरी समिति रिपोर्ट में की गई अनुशंसा से हुई थी जिससे विभिन्न समितियां बनी और जिससे औपचारिक कार्पोरेट शासन संहिता का निर्माण का मार्ग प्रशस्त हुआ। इस संहिता की अधिसूचना भारतीय प्रतिभूति विनिमय बोर्ड (सेबी) द्वारा स्टाक एक्सचेंजों के सूचीबद्धता दिशानिर्देशों में एक नए खंड 49 का समावेश करके की गई थी जिसके लिए सूचीबद्ध कम्पनियों के लिए खंड 49 का अनुसरण करना 1 जनवरी, 2006 से अनिवार्य कर दिया गया था। खंड 49 के अंतर्गत अनुपालन के कुछ प्रमुख क्षेत्र निम्नलिखित हैं
एचपीसीएल द्वारा कार्पोरेट शासन की अपेक्षाओं एवं इसके भावार्थ का अनुपालन करने की दिशा में आवश्यक उपाय किए गए हैं।
एचपीसीएल द्वारा अपनी सभी क्रियाओं का निर्वाह नीतियों, आंतरिक एवं बाह्य विनियमों के दायरे में तथा पारदर्शी स्वरूप में करने पर विशेष बल दिया गया है। एक सरकारी कम्पनी होने के नाते इसके क्रियाकलाप भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (सीएजी), केन्द्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी), संसदीय समितियों, सांविधिक लेखापरीक्षकों इत्यादि जैसी अनेक बाह्य एजेंसियों द्वारा संवीक्षा किए जाने के अध्याधीन हैं।
अन्य कॉर्पोरेट की तरह एचपीसीएल का शीर्ष स्तर इसका निदेशक मंडल है। निदेशक मंडल द्वारा अनेक उप-समितियों यथा कार्यात्मक निदेशकों की समिति (सीएफडी), लेखापरीक्षा समिति, निवेश समिति, पारिश्रमिक समिति, निवेशक शिकायत समिति तथा सीएसआर एवं संधारणीयता विकास समिति का गठन किया गया है। इन समितियों की संरचना का विवरण रिपोर्ट में दिया गया है। इन समितियों की बैठकों का आयोजन आवश्यकता आधार पर किया जाता है तथा इनकी बैठकों के कार्यवृत्त निदेशक मंडल की सूचना के लिए प्रस्तुत किए जाते हैं। कार्यात्मक निदेशकों की समिति के अलावा समितियों के अधिकांश सदस्य समन्वयक की भूमिका का निर्वाह करने वाले पूर्णकालिक निदेशकों सहित स्वतंत्र गैर-कार्यकारी अथवा सरकार से नामित निदेशक हैं।
निगम द्वारा निगम के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक, कार्यात्मक निदेशकों तथा एसबीयू प्रमुखों से युक्त एक कार्यकारी परिषद का गठन किया गया है। यह परिषद संगठन से संबंधित महत्वपूर्ण मामलों पर विचार, विश्लेषण करती है तथा विचार में लिए गए मामलों के संबंध में आगे की कार्रवाई की अनुशंसा करती है। टीम एप्रोच, क्रियाओं के प्रति पारस्परिक सहयोग परिषद द्वारा सामूहिक चर्चा किए गए मामलों पर बल दिया जाता है जिससे निर्णय निर्धारण में संवर्धन संभव हो पाया है। इसके परिणामस्वरूप निगम की कॉर्पोरेट संकल्पना एवं संकल्पना विवरण में उल्लिखित आंकाक्षाओं की अभिमुखता को साकार रूप देने की दिशा में एकीकृत विचार प्रक्रिया एवं संरेखित एप्रोच स्थापित हो सकी है।
निगम में विधिवत प्रलेखित प्राधिकारों की सीमा का मैनुअल, अधिप्राप्ति मैनुअल, चार्ट ऑफ एकाउंट्स इत्यादि हैं जिससे संगठन में विस्तारित विकेन्द्रीकृत निर्णय निर्धारण प्रक्रिया का प्रसार देश में संगठन के स्थित विभिन्न स्तरों तक हो पाया है।
प्राधिकारों की सीमा के मैनुअल (ईएएम) में निदेशक मंडल, कार्यात्मक निदेशकों की समिति, कार्यकारी समिति, संविदा समिति, बोली प्रक्रिया समिति एवं वरिष्ठ वैयक्तिक पदों इत्यादि जैसे विभिन्न स्तरों पर उपयोग में लाए जाने प्राधिकारों का उपयोग निगम के विभिन्न क्रियाकलापों के लिए करने का निर्धारण किया गया है। यह मैनुअल बिक्री, क्रूड एवं शिपिंग, पूंजी परियोजनाएं, परिचालन एवं वितरण, वित्त, मानव संसाधन इत्यादि जैसे विभिन्न क्रियाकलापों के लिए विभिन्न घटकों में विभाजित किया गया है तथा इससे उपर्युक्तानुसार विभिन्न समितियों द्वारा वित्त सहित आंतरिक-कार्यात्मक समूहों की प्रस्तुति के अनुसार निर्णय निर्धारक प्रक्रिया की जानकारी प्रदान करता है। इससे पारदर्शी एवं विधिवत विचारित एवं प्रक्रियाबद्ध निर्णय निर्धारण प्रक्रिया का अनुसरण निर्धारित व्यवस्था एवं प्रक्रियाओं के अनुसार हो पाता है जिससे विवाचन के लिए कोई स्थान शेष नहीं रहता है।
इस मैनुअल में अधिप्राप्ति एवं अनुबंधों को अंतिम स्वरूप प्रदान करने की प्रक्रिया के लिए अनुसरण की जाने वाली प्रक्रियाओं का उल्लेख किया गया है । इसमें, अन्यों के साथ साथ, विभिन्न स्तरों के अधिप्राप्ति प्राधिकार, मापदंड एवं अधिप्राप्ति की प्रक्रियाओं के निर्धारण दिए गए हैं।
कॉर्पोरेट अभिशासन के मूल सिद्धांतों अर्थात पारदर्शिता, सत्यपरकता, प्रकटीकरण एवं उत्तरदेयता के आधार पर हमारा प्रयास सदैव शेयरधारकों, कर्मचारियों, ग्राहकों एवं अन्य स्टेकधारकों के मध्य विश्वास का निर्माण करना है।
एचपीसीएल द्वारा 12 अक्तूबर, 2005 से प्रभावी सूचना अधिकार अधिनियम, 2005 का कार्यान्वयन किया गया है। इससे संबंधित विस्तृत जानकारी एचपीसीएल की इस वेबसाइट www.hindustanpetroleum.com पर उपलब्ध हैं तथा इसे समय समय पर अद्यतन किया जाता है। सूचना अधिकार अधिनियम के अंतर्गत भारतीय नागरिकों द्वारा की जाने वाली पूछताछ पर प्रक्रिया के लिए विभिन्न विभागों का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिकारी देश भर में जन सूचना अधिकारी एवं अपीलिय प्राधिकारी के कार्यों के निर्वाह के लिए प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।
निगम द्वारा संविदाओं को जारी करने की प्रक्रिया में नैतिकता / पारदर्शिता के संवर्धन के लिए ‘’सत्यनिष्ठा संधि’’ (आईपी) की प्रक्रिया प्रारंभ की गई है। दिनांक 13 जुलाई, 2007 को ‘’ट्रांसप्रेंसी इंटरनेशनल’’ के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए हैं। इसे निगम में 1 सितम्बर, 2007 से प्रभावी किया गया है। सत्यनिष्ठा संधि अब निविदा दस्तावेजों का भाग बन गई है जिसपर कम्पनी एवं सफल विक्रेता /बोलीदाता द्वारा हस्ताक्षर किए जाते हैं ।