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डीजल बैनर

तकनीकी शब्‍दों में पेट्रोडीजल के नाम से ज्ञात डीजल को हाई-स्पीड डीजल (एचएसडी) भी कहा जाता है तथा इसका उत्‍पादन भी 200 डिग्री सेल्सियस और 400 डिग्री सेल्सियस के बीच कच्चे तेल के आनुपातिक आसवन से होता है जिसके कार्बन चेन का मिश्रण हो पाता है और यह सैचुरेटिड हाइड्रोकार्बन (मुख्य रूप से पैराफिन जिसमें एन, आइसो, और साइक्लोपरैफिन्स शामिल हैं) तथा ऐरोमैटिक हाइड्रोकार्बन (नैफ्थलीन और अल्केलेबेनजेस सहित) से बना होता है ।

डीजल ईंधन की गुणवत्ता प्रमुख माप इसका सीटेन नंबर है। उच्च सीटेन नंबर गर्म कम्प्रेसर एयर में स्प्रे किए जाने पर ईंधन अधिक तेजी से इग्नियेट होता है।

डीजल इंजन उच्च-वोल्टेज स्पार्क इग्निशन (स्पार्क प्लग) का उपयोग नहीं करते हैं जो रासायनिक प्रतिक्रिया के लिए आवश्यक हवा से अधिक हवा में ईंधन जलाते हैं। इस प्रकार वे कम ईंधन का उपयोग करते हैं। क्योंकि उनमें उच्च संपीड़न अनुपात होता है और कोई थ्रॉटल नहीं होता है, डीजल इंजन कई स्पार्क-इग्नाइटेड इंजनों की तुलना में अधिक कुशल होते हैं। डीजल पर चलने वाले इंजन भी अधिक टॉर्क प्रदान करते हैं और उनके रुकने की संभावना कम होती है, क्योंकि वे एक यांत्रिक या इलेक्ट्रॉनिक गवर्नर द्वारा नियंत्रित होते हैं।

डीजल-कार आम तौर पर गैसोलीन-कारों की तुलना में किफायती होती है। डीजल इंजन में प्रति लीटर ऊर्जा की मात्रा एवं इसकी कार्यक्षमता ज्यादा होने के कारण ये अधिक किफायती होते हैं। तथापि अधिक कम्प्रेशन अनुपात का अर्थ है डीजल इंजनों से नाइट्रोजन (NOx) के ऑक्साइड का अधिक उत्सर्जन होना और यह गैसोलीन इंजनों की तुलना में डीजल इंजनों की प्रमुख कमी है।

डीजल ईंधन का उपयोग अनेक प्रकार के परिवहन (भारी वाणिज्यिक वाहन, बस) में किया जाता है, विशेष रूप से सेल्फ पावर्ड रेल वाहनों (लोकोमोटिव और रेल कार) ट्रैक्टर, पावर जेनरेशन, पम्प सेट तथा अन्य डीजल इंजन ड्राइवन एप्लिकेशन के कम्बस्चन इंजन के लिए।

डीजल के प्रयोग का एक दुष्प्रभाव यह है कि ठंडे मौसम में वाहन ईंधन के रूप में गैसोलीन या अन्य पेट्रोलियम जनित ईंधनों की तुलना में ईंधन का तापमान कम होते ही इसकी विस्कॉसिटी तेजी से बढ़ जाती है, -19 डिग्री सेल्सियस या –15 डिग्री सेल्सियस तापमान पर यह नॉन फ्लोइंग जैल में परिवर्तित हो जाता है, जिससे सामान्य ईंधन पम्पों से इसे पम्प नहीं किया जा सकता और बेहद ठंडे मौसम में डीजल इंजन स्टार्ट करने में कठिनाई होती है।

डीजल इंजनों को स्पार्क इग्निशन की आवश्यकता नहीं होती है, जब तक डीजल ईंधन होता है वे ऑपरेट करते हैं। ईंधन की आपूर्ति आमतौर पर ईंधन पंप के माध्यम से की जाती है। यदि पम्प ब्रेक्स डाउन ‘ओपन’ स्थिति में होता है तो ईंधन की आपूर्ति अनियंत्रित होगी और इंजन बेकाबू होगा और टर्मिनल के खराब होने का खतरा बना रहता है।

कम्बस्चन के दौरान ईंधन का सल्फर ऑक्सीकरण होता है, इससे सल्फर डाइआक्साइड एवं सल्फर ट्रायऑक्साइड का निर्माण होता है। तथापि, सल्फर को कम करने की प्रक्रिया से ईंधन की लूब्रिसिटी भी कम होती है, जिसका अर्थ है कि ईंधन इंजेक्टर को ल्यूब्रिकेट करने के लिए ईंधन में एडिटिव्स मिलाना जरूरी होता है।

भारत में उत्सर्जन मानक बीएस - VI ने भारत सरकार द्वारा लागू राष्ट्रीय ऑटो ईंधन नीति को ध्यान में रखते हुए डीजल में सल्फर के स्तर को प्रभावी रूप से कमी लाना तेल रिफाइनरियों के लिए आवश्यक कर दिया है। बीआईएस ने "डीजल विद 7% बायोडीजल" के लिए विनिर्देश जारी किए हैं।

हमारे निगम द्वारा बेचा जानेवाला हाई स्पीड डीजल (एचएसडी) भारतीय मानक आईएस 1460:2005 (छठवाँ संस्करण) के अनुरूप है, जिसमें डीजल ईंधन की विशिष्टताएं हैं।

फिल्टर पेपर टेस्ट (पेट्रोल), डेन्सिटी टेस्ट (पेट्रोल और डीजल), मात्रा की जांच।